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मल्टीपार्टी डेमोक्रेसी को एक पार्टी की तानाशाही में बदलने के षड्यंत्र की शुरुआत थी ‘आपातकाल’

जब किसी व्यक्ति के भीतर छिपा हुआ तानाशाही स्वभाव बाहर आ जाता है, तभी आपातकाल लगता है, यह इतिहास हमारी युवा पीढ़ी को जानना जरुरी है

 

नई दिल्ली। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने “आपातकाल के 50 साल” की पूर्व संध्या पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी न्यास द्वारा आयोजित एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में आपातकाल को याद करते हुए कहा कि “1975 का आपातकाल कोई लोकतांत्रिक निर्णय नहीं, बल्कि तत्कालीन सत्ता की तानाशाही और अन्याय का कालखंड था।”

उन्होंने कहा, “11 जुलाई 2024 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने निर्णय लिया कि हर वर्ष 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा, तो यह इसलिए था कि देश कभी न भूले कि जब कोई सरकार तानाशाह बनती है, तो पूरे देश को उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है।”

“संविधान को एक मिनट में रौंदा गया”

अमित शाह ने आपातकाल की घोषणा की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा, “जिस संविधान को बनाने में 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन लगे, उसे मात्र एक ‘किचन कैबिनेट’ ने एक रात में रौंद दिया।” उन्होंने कहा कि 24 जून 1975 की रात स्वतंत्र भारत की सबसे लंबी रात थी, जिसकी सुबह 21 महीने बाद हुई।

“तानाशाही मानसिकता, सत्ता की भूख”

गृह मंत्री ने स्पष्ट कहा कि आपातकाल कोई मजबूरी नहीं थी, बल्कि सत्ता की भूख और तानाशाही मानसिकता की उपज थी।”
उन्होंने कहा कि जन आंदोलनों और विरोध की आवाज़ से घबराकर, तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग किया और 1.10 लाख विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, छात्रों और कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया।

“समाज को लोकतंत्र के लिए जागरूक रखना ज़रूरी”

शाह ने कहा कि अगर समाज की सामूहिक स्मृति से ऐसी घटनाएं धुंधली हो जाएं, तो लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है। उन्होंने कहा, “लोकतंत्र और तानाशाही कोई व्यक्ति से नहीं, बल्कि मन के भाव होते हैं जो समय-समय पर फिर सामने आ सकते हैं। इसलिए चेतना बनाए रखना ज़रूरी है।”

“देश को कारागार बना दिया गया था”

अमित शाह ने कहा कि आपातकाल में न्यायपालिका, प्रेस, कलाकार, बुद्धिजीवी – सभी मूकदर्शक बन गए थे और पूरे देश को कारागार में बदल दिया गया था। उन्होंने कहा, “संविधान में 42वां संशोधन कर प्रस्तावना बदली गई, 40 धाराएं बदली गईं और सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को तक सीमित कर दिया गया। यह लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला अध्याय था।”

“लोकतंत्र की रक्षा, जनता की जिम्मेदारी”

अमित शाह ने युवाओं से अपील की कि वे शाह कमीशन रिपोर्ट अवश्य पढ़ें और लोकतंत्र की रक्षा के लिए सजग रहें। उन्होंने कहा,
“अगर भविष्य में कोई तानाशाही प्रवृत्ति उभरे, तो युवा उसमें जयप्रकाश नारायण बनने का साहस करें।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान की आत्मा की रक्षा और उसके हननकर्ताओं को दंडित करने की जिम्मेदारी जनता की ही है।

कार्यक्रम के समापन पर अमित शाह ने दोहराया कि “भारत लोकतंत्र की जननी है, और कोई भी तानाशाह हमारी लोकतांत्रिक नींव को नहीं हिला सकता।” उनका भाषण न केवल एक ऐतिहासिक समीक्षा थी, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए एक राजनीतिक चेतावनी भी थी कि भारत की लोकतांत्रिक विरासत को कोई भी ताकत झुका नहीं सकती।

 

 

 

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