
अधर्म पर धर्म की विजय का सबसे बड़ा त्यौहार दशहरा पूरे देश में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम ने पाप के प्रतीक रावण का वध किया था। इस लिए बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में हर साल विजयदशमी का यह त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन को मनाने के लिए आपने भी हर साल रावण के पुतले का दहन होते जरूर देखा होगा। लेकिन कानपुर में एक ऐसा मंदिर है जहां 103 साल से दशहरा रावण पूजा के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस मंदिर के पट साल में सिर्फ एक बार दशहरे के दिन ही खोले जाते हैं। इस मंदिर परिसर में रावण की खास पूजा की जाती है। सुबह से ही लोगों की भीड़ रावण के दर्शन के लिए मंदिर पहुंचना शुरू हो जाती है। यहां पर सरसों के तेल के दिए जलाकर भक्त अपनी मन्नत मांगते हैं।
दशानन मंदिर का इतिहास
भारत का यह अनोखा मन्दिर अपने आप में कई पौराणिक कथाएं समेटे हुए है।मंदिर के इतिहास की बात करें तो लोगों का ऐसा मानना है कि इस मंदिर को 103 साल पहले महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने बनवाया था। इस मंदिर को बनाने के पीछे कई प्राचीन कहानियां भी हैं, कहा जाता है कि रावण बहुत विद्वान होने के साथ ही भगवान शिव का परम भक्त भी था। महादेव को प्रसन्न करने के लिए रावण मां छिन्नमस्तिका देवी की उपासना करता था। मां ने रावण की भक्ति से खुश होकर रावण को यह वरदान दिया कि उनकी पूजा को सफल तभी माना जाएगा जब श्रद्धालु पहले रावण की पूजा करेंगे। मान्यता है साल 1868 में किसी राजा ने देवी छिन्नमस्तिका का मंदिर बनवाया था और यहां रावण की मूर्ति को भी प्रहरी के रूप में स्थापित किया गया था। दशानन का यह मंदिर शारदीय नवरात्रि में सप्तमी से लेकर नवमी तक लोगों के लिए खुला रहता है। देश-विदेश से लोग इस अनोखे मंदिर को देखने आते हैं।