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देश का ‘कानून अब अंधा नहीं’…न्याय की देवी की मूर्ति में किए गए बड़े बदलाव

आपने कई फिल्मों के सीन या फिर अदालतों में आंखों पर पट्टी बंधी न्याय की देवी की मूर्ति देखी होगा। लेकिन, अब नए भारत की न्याय की देवी की आंखें से पट्टी खुल गईं हैं। यहां तक कि उनके हाथ में अब तलवार की जगह संविधान आ गया है। कुछ समय पहले ही अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कानून बदले हैं। सालों से न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी हटाकर सुप्रीम कोर्ट ने देश को ये संदेश दिया है कि अब ‘ कानून अंधा’ नहीं। सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों का कहना है कि यह नई मूर्ति पिछले साल बनाई गई थी जिसे अप्रैल 2023 में नई जज लाइब्रेरी के पास स्थापित किया गया था। लेकिन इसकी तस्वीरें अब सामने आई हैं।

मुख्य न्यायधीश डी वाई चंद्रचूड़ के आदेशों पर न्याय की देवी में बदलाव किया गया है। ये नई मूर्ति सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में लगाई गई है। जो पहले न्याय की देवी की मूर्ति थी उसमें उनकी दोनों आंखों पर पट्टी बंधी होती थी और साथ ही एक हाथ में तराजू जबकि दूसरे में हाथ में तलवार होती थी। अदालतों में दिखने वाली इस मूर्ति को लेडी जस्टिस मूर्ति कहा जाता है। इस मूर्ति को मिस्र की देवी मात और ग्रीक देवी थेमिस के नाम से भी जाना जाता है।

CJI ने क्यों लिया मूर्ति बदलने का फैसला?
CJI चंद्रचूड़ का मानना था कि अंग्रेजी विरासत से अब बाहर निकलना चाहिए। कानून कभी अंधा नहीं होता, वो सबको समान रूप से देखता है। इसलिए CJI का मानना था कि न्याय की देवी का स्वरूप बदलना चाहिए। साथ ही देवी के हाथ में तलवार की जगह संविधान होना चाहिए; जिससे समाज में ये संदेश जाए कि वो संविधान के अनुसार न्याय करती हैं। क्योंकि तलवार हिंसा का प्रतीक है। जबकि, अदालतें हिंसा से नहीं बल्कि संविधान के अनुसार इंसाफ करती हैं। दूसरे हाथ में तराजू सही है कि जो समान रूप से सबको न्याय देती है।

कहां से आई न्याय की देवी की मूर्ति?
न्याय की देवी की वास्तव में यूनान की प्राचीन देवी हैं, जिन्हें न्याय का प्रतीक माना जाता है। इनका नाम जस्टिया है जिससे जस्टिस शब्द बना। मूर्ति की आंखों पर बंधी पट्टी का भी गहरा मतलब है। आंखों पर बंधी पट्टी का मतलब है कि न्याय की देवी हमेशा निष्पक्ष होकर न्याय करेंगी। किसी को देखकर न्याय करना शायद एक पक्ष में भी जा सकता है। इसलिए इन्होंने आंखों पर पट्टी बांधी थी। यूनान से ये मूर्ति ब्रिटिश पहुंची। 17वीं शताब्दी में एक अंग्रेज अफसर इसे भारत लेकर आए थे। जो की एक न्यायालय अधिकारी थे। ब्रिटिश काल में 18वीं शताब्दी के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक इस्तेमाल किया गया। बाद में जब भारत देश आजाद हुआ, तो हमने भी इसी न्याय की देवी को स्वीकार किया था।

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