51% भारतीय कर्मचारी काम के भारी दबाव में, बर्नआउट और मानसिक तनाव की स्थिति चिंताजनक
यह रिपोर्ट भारत के संगठनों को स्पष्ट संदेश देती है: "कर्मचारी कल्याण अब विकल्प नहीं, ज़रूरत है।"

नई दिल्ली। भारत में कामकाजी माहौल को लेकर एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 51% भारतीय कर्मचारी अत्यधिक कार्य दबाव में हैं, जबकि 60% कर्मचारियों में बर्नआउट के लक्षण देखे गए हैं। ये निष्कर्ष लिव लव लाफ फाउंडेशन और मैकिन्से हेल्थ इंस्टीट्यूट द्वारा प्रस्तुत अध्ययन में सामने आए हैं, जो भारत में कार्यस्थलों पर मानसिक स्वास्थ्य संकट की गंभीरता को रेखांकित करते हैं।
इस चिंताजनक पृष्ठभूमि में, लिव लव लाफ फाउंडेशन—जो 2015 में एक चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में स्थापित हुआ था—ने भारत में कॉर्पोरेट जगत के लिए ‘कॉर्पोरेट मेंटल हेल्थ एंड वेल-बीइंग प्रोग्राम’ की शुरुआत की है। यह कार्यक्रम डेटा आधारित, मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण और वास्तविक अनुभवों पर आधारित है, जिसका उद्देश्य भारतीय संगठनों को मानसिक रूप से सशक्त कार्यस्थल बनाने में मदद करना है।
डेलॉइट की 2022 की रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया था कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण भारतीय कंपनियों को सालाना ₹1.10 लाख करोड़ का नुकसान हो रहा है। यानी मानसिक तनाव अब केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि व्यवसायिक और आर्थिक चुनौती भी बन चुका है। मैकिन्से हेल्थ इंस्टीट्यूट द्वारा 2023 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि भारतीय कर्मचारियों में बर्नआउट, चिंता, डिप्रेशन और मानसिक तनाव के लक्षण बड़े पैमाने पर देखे जा रहे हैं। करीब 60% कर्मचारियों ने बर्नआउट की शिकायत की, जबकि 51% ने बताया कि वे काम के भारी दबाव में हैं। ये आंकड़े कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
डॉ. श्याम भट, चेयरपर्सन, लिव लव लाफ फाउंडेशन ने कहा, “अब समय आ गया है कि कंपनियाँ केवल औपचारिक एम्प्लॉयी असिस्टेंस प्रोग्राम पर निर्भर न रहें। हमें सालाना सर्वेक्षणों से आगे बढ़कर डेटा-आधारित और निरंतर प्रयासों पर ज़ोर देना होगा।” किरण मजूमदार-शॉ, ट्रस्टी, फाउंडेशन और चेयरपर्सन, बायोकॉन ग्रुप ने कहा, “मानसिक स्वास्थ्य को अब प्राथमिक व्यावसायिक चिंता के रूप में देखा जाना चाहिए। यह सिर्फ एक नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि एक स्मार्ट बिज़नेस स्ट्रैटेजी है।” अनीशा पादुकोण, सीईओ, फाउंडेशन ने कहा, “कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता। हमारा नया कार्यक्रम कंपनियों को साल-दर-साल मूल्यांकन, विश्लेषण और सुधार के लिए सक्षम बनाता है।”
हर कंपनी को उसके अनुसार रिपोर्ट मिलती है, जिससे नीतिगत सुधार की दिशा तय होती है। संगठन के हर स्तर पर ठोस हस्तक्षेप की योजना बनाई जाती है। यह पहल कंपनियों को हर साल प्रगति ट्रैक करने के लिए प्रेरित करती है। विभिन्न कंपनियों से एकत्र डेटा से बड़े स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति का विश्लेषण किया जाएगा।
51% कर्मचारी यदि लगातार कार्य दबाव में हैं, तो यह न केवल उनके व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करता है बल्कि पूरे कॉर्पोरेट इंडिया की उत्पादकता, नवाचार और विकास पर भी असर डालता है। लिव लव लाफ फाउंडेशन द्वारा पेश किया गया यह कार्यक्रम एक नई दिशा प्रदान करता है — जहां कार्यस्थल न केवल आर्थिक प्रगति का माध्यम हैं, बल्कि सहानुभूति और मानसिक सुरक्षा का केंद्र भी बनें।