
क्या आप जानते हैं? वेस्टइंडीज का एक छोटा-सा देश त्रिनिदाद और टोबैगो, जिसे आज लोग ‘मिनी बिहार’ कहते हैं, वह भारत से हजारों किलोमीटर दूर होकर भी, हमारे दिल के बेहद करीब है? पीएम मोदी जब वहां पहुंचे तो सिर्फ एक राजनयिक यात्रा नहीं थी, बल्कि वह एक भावनात्मक वापसी भी थी।आपको शायद मालूम न हो, लेकिन त्रिनिदाद की धरती पर आज भी भोजपुरी गूंजती है,आज भी यहां दीपावली के दीये जलते हैं और गूंजते हैं रामायण के दोहे।यह कहानी साल 1845 से शुरू होती है जब एक जहाज फातेल रज्जाक 225 भारतीयों को लेकर त्रिनिदाद के तट पर पहुंचा। ये थे गिरमिटिया मजदूर।
गिरमिट क्या है
अब आप सोच रहे होंगे कि‘गिरमिट’क्या है, जी हां तो यह एग्रीमेंट है एक ऐसा समझौता जो उन्हें गुलामी से थोड़े ही ऊपर की जिंदगी देता था। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश से आए ये लोग 5-7 साल के कांट्रैक्ट पर भेजे गए थे, लेकिन ये साल नहीं, पूरी जिंदगी बन गई। इन लोगों ने वहां गन्ने के खेतों में खून-पसीना बहाया, ज़ुल्म सहा लेकिन संस्कार नहीं छोड़े। रामचरितमानस, चौती नाच, तीज-त्योहार सब कुछ वहां की मिट्टी में भी जिंदा रहा। आज त्रिनिदाद और टोबैगो की करीब 40% आबादी भारतीय मूल की है। हर दूसरा आदमी किसी न किसी तरह से भारत से जुड़ा है।
PM मोदी का दौरा
त्रिनिदाद की पूर्व प्रधानमंत्री कमला बिसेसर राष्ट्रपति क्रिस्टीन कंगालू दोनों भारतीय मूल की हैं। कमला के परदादा राम लखन मिश्रा बिहार के बक्सर से थे। यानी आज वहां भारत सिर्फ दिलों में नहीं, बल्कि देश की सत्ता में भी बसा है।
सालों बाद जब त्रिनिदाद के एक मुस्लिम परिवार ने अपने पुरखों को खोजा, तो उनके पूर्वज बिहार शरीफ के निकले । बसीरन नाम की महिला 1910 में त्रिनिदाद पहुंची थीं और आज उनके वंशजों ने भारत से फिर रिश्ता जोड़ लिया है। ये कोई एक कहानी नहीं हजारों कहानियां हैं, जो दिखाती हैं कि दूरी चाहे 13,000 किलोमीटर हो या 7 पीढ़ियां कीं जड़ें कभी नहीं टूटतीं। पीएम मोदी इस ऐतिहासिक धरती पर अब तक दो बार जा चुके हैं। पहली बार 2000 में जब वे बीजेपी के महासचिव थे। और अब, जब भारत और त्रिनिदाद के रिश्ते 180 साल पूरे कर रहे हैं, उनका दौरा सिर्फ डिप्लोमैटिक नहीं, संवेदनाओं से भरा हुआ संदेश है।आज त्रिनिदाद में डॉक्टर, इंजीनियर, नेता, शिक्षक सब भारतीय मूल के हैं,लेकिन उनकी आत्मा अब भी छपरा, बक्सर, आजमगढ़ की गलियों में घूमती है। वे लोग जिन्होंने अपनी भाषा, अपनी पूजा, अपनी पहचान नहीं छोड़ी उन्होंने साबित कर दिया कि संस्कृति कभी मरती नहीं, वे बस नए देश में जन्म लेती है। त्रिनिदाद और टोबैगो आज भी एक जिंदा सेतु है भारत के दिल से जुड़ा हुआ।