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योगी के अफसरों पर क्यों टेढ़ी हो गई मोदी की नजर? सवालों से घिरा डबल इंजन की सरकार का तालमेल

 

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में इन दिनों अफसरशाही और सत्ता के बीच एक नया और दिलचस्प ट्रेंड तेजी से चर्चा में है। जब भी किसी मुख्य सचिव या डीजीपी की सेवानिवृत्ति का वक्त आता है, तो अटकलों का बाजार गर्म हो जाता है — “क्या एक्सटेंशन मिलेगा?” लेकिन हर बार की तरह इस बार भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पसंदीदा अफसरों को केंद्र से मंजूरी नहीं मिली। यह सिलसिला अब कुछ गंभीर सवाल खड़े कर रहा है: क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच अफसरों को लेकर कोई मतभेद है?

मनोज सिंह को नहीं मिला सेवा विस्तार
ताजा मामला है यूपी के पूर्व मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह का, जिनके कार्यकाल को बढ़ाने की योगी सरकार ने केंद्र से सिफारिश की थी। लेकिन 30 जून की शाम तक जब कोई आदेश नहीं आया, तो शशि प्रकाश गोयल को नया मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया गया — जो खुद योगी के बेहद करीबी माने जाते हैं।

यह पहला मौका नहीं है जब केंद्र ने योगी सरकार की सिफारिश को दरकिनार किया है। इससे पहले मई में डीजीपी प्रशांत कुमार को सेवा विस्तार देने की कोशिश भी केंद्र की असहमति से नाकाम हो गई थी।

दूसरी ओर, दूसरे राज्यों में मिल रहा एक्सटेंशन
यह सब तब हो रहा है जब छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तराखंड और दिल्ली जैसे भाजपा या एनडीए शासित राज्यों में मुख्य सचिवों और शीर्ष अधिकारियों को सेवा विस्तार देने में केंद्र सरकार काफी उदार नजर आई है।

छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव अमिताभ जैन को 3 महीने का एक्सटेंशन मिला।

महाराष्ट्र में नितिन करीर को अप्रैल से जून तक सेवा विस्तार मिला।

उत्तराखंड की राधा रतूड़ी को भी छह महीने का विस्तार मिला।

दिल्ली के नरेश कुमार को भी तीन महीने का दूसरा एक्सटेंशन दिया गया।

तो क्या मनोज सिंह के खिलाफ थीं शिकायतें?
सूत्रों के अनुसार, पूर्व मुख्य सचिव मनोज सिंह के खिलाफ कुछ गंभीर शिकायतें केंद्र को मिली थीं, जिन्हें निस्तारण के लिए यूपी सरकार को भेजा गया। ये फाइलें मुख्यमंत्री कार्यालय के पास पहुंची, लेकिन इसके बावजूद योगी सरकार ने सेवा विस्तार की सिफारिश कर दी। यही बात शायद केंद्र को नागवार गुजरी और उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया।

डबल इंजन सरकार में क्यों नहीं दिख रही तालमेल?
यह लगातार दूसरी या तीसरी बार है जब योगी आदित्यनाथ की पसंदीदा अफसरों को केंद्र से एक्सटेंशन नहीं मिला है।

अवनीश अवस्थी को भी पिछले साल सेवा विस्तार नहीं मिला, तो योगी ने उन्हें अपना सलाहकार बना लिया।

डीजीपी स्तर पर भी योगी सरकार ने नियमों को दरकिनार करते हुए कार्यवाहक डीजीपी ही नियुक्त किए — जो उनके भरोसेमंद रहे हैं।

क्या मतलब निकाला जाए?
यह तस्वीर एक बड़ी राजनीतिक कहानी बयां करती है — जहां केंद्र सरकार और योगी आदित्यनाथ के बीच अफसरशाही को लेकर कोई अदृश्य रस्साकशी चल रही है। केंद्र के रवैये से यह संकेत मिल रहे हैं कि वह योगी सरकार की सिफारिशों को तवज्जो नहीं देना चाहता। यानी डबल इंजन की सरकार के दोनों इंजन पूरी तरह सिंक में नहीं हैं।

उत्तर प्रदेश की सियासत में अफसरशाही की नियुक्तियों और सेवा विस्तार को लेकर उठते सवाल इस ओर इशारा करते हैं कि सब कुछ सामान्य नहीं है। यदि यह स्थिति बनी रही, तो आने वाले समय में यह भाजपा के लिए अंदरूनी असंतुलन का कारण भी बन सकती है।

 

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