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Constitution Club Of India का चुनाव बना सियासी अखाड़ा: भाजपा के दो दिग्गज आमने-सामने, 12 अगस्त को होगी टक्कर

नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली में इस बार कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया का चुनाव खासा दिलचस्प और राजनीतिक रूप से रोमांचक होने जा रहा है। वजह साफ है—एक ही पार्टी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दो कद्दावर नेता आमने-सामने हैं। इनमें एक हैं वर्तमान सांसद और 4 बार के लोकसभा सांसद राजीव प्रताप रूडी, जो पिछले 25 वर्षों से क्लब की गवर्निंग काउंसिल के सचिव (प्रशासन) पद पर काबिज हैं।

वहीं, इस बार उन्हें चुनौती मिल रही है उनकी ही पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. संजीव बालियान से, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आते हैं और दिल्ली की राजनीतिक गलियों में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है।

चुनाव 12 अगस्त को, मुकाबला कांटे का

इस प्रतिष्ठित संस्था के चुनाव 12 अगस्त 2025 को होने जा रहे हैं, जिसमें कुल लगभग 1200 सदस्य अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। चुनाव इस बार बेहद चुनौतीपूर्ण और प्रतिष्ठा का विषय बन गया है, क्योंकि दोनों ही प्रत्याशी भाजपा के वरिष्ठ और प्रभावशाली नेता हैं।

कौन हैं वोटर?

इस चुनाव की खास बात यह है कि इसमें मतदाता सूची किसी आम संगठन जैसी नहीं, बल्कि बेहद प्रभावशाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे और वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज भी क्लब के सदस्य हैं और वोट डालने के पात्र हैं।

कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के सदस्य संसद के दोनों सदनों—लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य हो सकते हैं। क्लब की गवर्निंग काउंसिल का कार्यकाल पांच साल का होता है।

राजनीतिक प्रतिष्ठा दांव पर

चुनाव में जहां एक ओर राजीव प्रताप रूडी अपनी लंबी प्रशासनिक पारी और अनुभवी नेतृत्व के बल पर मैदान में हैं, वहीं डॉ. संजीव बालियान नई दृष्टिकोण और क्षेत्रीय संतुलन के साथ खुद को पेश कर रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मुकाबला सिर्फ एक संस्था का चुनाव नहीं, बल्कि भाजपा के आंतरिक समीकरणों की परीक्षा भी बन गया है। किसे मिलती है जीत और कौन बनता है अगले पांच सालों के लिए क्लब का प्रशासनिक सचिव, इसका फैसला 12 अगस्त को होगा।

कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया का यह चुनाव न केवल एक संवैधानिक संस्था की नेतृत्व व्यवस्था को निर्धारित करेगा, बल्कि यह भी बताएगा कि भाजपा के भीतर लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा कितनी जीवंत है। सबकी निगाहें अब 12 अगस्त पर टिकी हैं।

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