अध्यात्मन्यूज़

निर्जला एकादशी पर श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब, तीर्थस्थलों में गूंजे जयकारे — जानिए इस व्रत का महत्व

निर्जला एकादशी को भीष्म एकादशी भी कहा जाता है और यह सभी एकादशियों में सबसे अधिक पुण्यदायी मानी जाती है

 

नई दिल्ली/अयोध्या/हरिद्वार। निर्जला एकादशी के पावन अवसर पर देशभर के प्रमुख तीर्थस्थलों पर आस्था का जनसैलाब उमड़ पड़ा। उत्तराखंड के हरिद्वार में श्रद्धालुओं ने हर की पौड़ी पर गंगा स्नान किया और पूजा-अर्चना कर पुण्य अर्जित किया। वहीं अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि मंदिर में भी भक्तों की लंबी कतारें देखने को मिलीं।

निर्जला एकादशी को भीष्म एकादशी भी कहा जाता है और यह सभी एकादशियों में सबसे अधिक पुण्यदायी मानी जाती है। इस दिन बिना जल ग्रहण किए उपवास रखने का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति अन्य सभी एकादशियों का व्रत नहीं कर पाता, वह यदि केवल निर्जला एकादशी का व्रत कर ले, तो उसे सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है।

हर की पौड़ी पर दिखी आस्था की बेमिसाल तस्वीरें

गंगा किनारे सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। स्नान के बाद लोगों ने गंगा मैया की आरती की और दान-पुण्य कर परिवार की सुख-शांति की कामना की। हरिद्वार प्रशासन ने सुरक्षा और व्यवस्थाओं को लेकर व्यापक इंतजाम किए थे।

अयोध्या में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब

निर्जला एकादशी के दिन श्री राम जन्मभूमि मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी। दर्शन के लिए अयोध्या के अलावा देश के कोने-कोने से लोग पहुंचे। मंदिर परिसर में भजन-कीर्तन और भगवान श्रीराम की विशेष आरती का आयोजन हुआ।

क्या है निर्जला एकादशी का महत्व?

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, इस दिन जल तक ग्रहण नहीं किया जाता और भक्त पूरे दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति, आरोग्य, और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

संतों और विद्वानों की राय

कई धर्माचार्यों और संतों ने कहा कि निर्जला एकादशी आत्मसंयम, त्याग और भक्ति का प्रतीक है। यह दिन हमें आस्था, तपस्या और करुणा का संदेश देता है।

देशभर के कई अन्य तीर्थ स्थलों जैसे वाराणसी, उज्जैन, वृंदावन, द्वारका आदि में भी निर्जला एकादशी पर विशेष पूजा, भजन संध्या और दान के कार्यक्रम आयोजित किए गए। निर्जला एकादशी न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक और आध्यात्मिक चेतना का भी अवसर बनता जा रहा है। लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने एक बार फिर सिद्ध किया कि भारत में धर्म और संस्कृति की जड़ें आज भी कितनी मजबूत हैं।

Related Articles

Back to top button