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बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद निशाने पर हिंदू, क्या है जमात-ए-इस्लामी ?

जमात-ए-इस्लामी जैसा कि नाम से ही जाहिर है, एक कट्टरपंथी पार्टी है और इसके निशाने पर हमेशा बांग्लादेश में रह रहे हिंदू रहे है। कट्टरपंथी बांग्लादेश में आखिरकार कट्टरपंथी पार्टी जमात-ए-इस्लामी अपने मंसूबों में कामयाब रही। जमात-ए-इस्लामी और इसकी स्टूडेंट विंग इस्लामी छात्र शिबिर ने विरोध प्रदर्शन को हिंसा की आग अहम भूमिका निभाई। हिंसक विरोध प्रदर्शन के बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्‍ता छोड़नी पड़ी। शेख हसीना को यूं देश छोड़कर भागना पड़ेगा, शायद ही किसी ने सोचा होगा। बांग्‍लादेश को इन बिगड़े हालातों में शेख हसीना छोड़ना भी नहीं चाहती थीं, लेकिन पारिवारिक दबाव के चलते उन्‍हें यह फैसला करना पड़ा बांग्‍लादेश की मौजूदा स्थिति के लिए जमात-ए-इस्लामी पार्टी काफी हद तक जिम्मेदार है।

पाकिस्‍तान से बांग्‍लादेश के आजाद होने का जमात-ए-इस्लामी शुरुआत से विरोध करती रही है। इन्‍होंने 1971 में मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों का पक्ष भी लिया था। बांग्‍लादेश सरकार ने जमात-ए-इस्लामी की 1971 में भूमिका को पार्टी पर प्रतिबंध लगाने के चार कारणों में से एक बताया गया था। इसके बाद से बांग्‍लादेश में आरक्षण के मुद्दे पर शुरू हुआ आंदोलन हिंसक हो गया था। बताया जा रहा है कि शेख हसीना सरकार ने कुछ दिनों पहले आतंकवाद रोधी कानून के तहत जमात-ए-इस्लामी और इसकी स्‍टूडेंट विंग इस्लामी छात्र शिबिर पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस बैन के कारण ही छात्रों का यह प्रदर्शन ज्‍यादा हिंसक हो गया और हालात ये हो गए कि शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्‍तीफा देना पड़ा।

जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश की कट्टरपंथी पार्टी है, जो चाहती थी कि पाकिस्‍तान से बांग्‍लादेश कभी आजाद ही न हो। बांग्लादेश की पहली मुजीबुर्रहमान सरकार के दौरान ही जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध लगने शुरू हो गए थे। पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की समर्थक रही है। इसलिए माना जा रहा है कि बांग्‍लादेश की नई सरकार में जमात-ए-इस्‍लामी भी शामिल हो सकती हजमात-ए-इस्लामी की जड़ें भारत से जुड़ी रही हैं। मानवधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट भी इस बात की तस्दीक करती रही ह। इस रिपोर्ट ने बताया गया है कि जमात-ए-इस्लामी और छात्र शिबिर लगातार बांग्लादेश में हिन्दुओं को निशाना बनाते रहे हैं। बांग्लादेश के गैर सरकारी संगठनों के अनुमान के अनुसार, साल 2013 से 2022 तक बांग्लादेश में हिन्दुओं पर 3600 से ज्‍यादा हमले हुए हैं. इन ज्‍यादातर हमलों में जमात-ए-इस्लामी का अहम भूमिका रही है।

पार्टी की स्थापना 1941 में ब्रिटिश शासन के तहत अविभाजित भारत में हुई थी। जमात-ए-इस्‍लामी की देश विरोधी गतिविधियों को देखते हुए बांग्‍लादेश के चुनाव आयोग ने इसका पंजीकरण रद्द कर दिया था। इसके बाद से ही जमात-ए-इस्लामी पार्टी ने शेख हसीना सरकार का पुरजोर विरोध करना शुरू कर दिया था। खुफिया सूचनाओं में आईसीएस सदस्यों की कई महीने पहले की योजना की ओर इशारा किया गया है। इसका मकसद पूरे देश में व्यापक हिंसा भड़काना था। एक अधिकारी ने खुलासा किया कि आईएसआई समर्थित जमात-ए-इस्लामी को शेख हसीना सरकार को अस्थिर करने के लिए इस साल की शुरुआत में बडी़ रकम दी गई थी। इस फंडिंग का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में सक्रिय चीनी संस्थाओं से आया था। शेख हसीना सरकार का भारत के हितों के प्रति संवेदनशील होना चीन को पसंद नहीं आ रहा था। इस्लामी छात्र संगठन के लोग आम लोगों का समर्थन पाने में भी कामयाब रहे और आखिरकार देश में तख्तापलट हो गया।

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