
नई दिल्ली। भारतीय सड़कों पर दौड़ते रंग-बिरंगे ट्रक न केवल माल ढोते हैं, बल्कि अपने साथ कला, संस्कृति और ट्रक ड्राइवरों की सोच का भी प्रतिबिंब पेश करते हैं। इन ट्रकों पर बनी खूबसूरत पेंटिंग, नारे और डिजाइन लंबे समय से ‘ट्रक आर्ट’ के नाम से मशहूर हैं। लेकिन अब इस कला को एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है – स्टीकर का बढ़ता इस्तेमाल।
ट्रक आर्ट – सड़क पर चलती गैलरी
भारत में दशकों से ट्रक ड्राइवर अपने वाहनों को सजाने के लिए स्थानीय कलाकारों को बुलाते रहे हैं। ये कलाकार ट्रक के पीछे “हॉर्न प्लीज”, “ओके टाटा” या धार्मिक प्रतीकों से लेकर प्राकृतिक नज़ारों और फिल्मी पोस्टरों जैसी पेंटिंग्स तक बनाते हैं। हर डिज़ाइन के पीछे ड्राइवर की अपनी कहानी, पसंद और जीवन दृष्टिकोण झलकती है।
स्टीकर ने छीना काम
हाल के वर्षों में, हाथ से पेंटिंग करवाने की बजाय तैयार स्टीकर बाजार में सस्ते और जल्दी उपलब्ध होने लगे हैं। इससे ट्रक मालिक समय और पैसा बचा पाते हैं, लेकिन ट्रक आर्टिस्टों के पास काम कम होता जा रहा है। कई अनुभवी कलाकार अब ऑटोमोबाइल पेंटिंग छोड़कर दूसरी नौकरियों में जाने को मजबूर हैं।
आर्टिस्टों की मुश्किलें
उत्तर प्रदेश के एक ट्रक आर्टिस्ट इरफान अली कहते हैं, “पहले एक ट्रक पेंट करने में हमें 10-12 दिन का काम मिलता था। अब लोग एक दिन में स्टीकर लगवा लेते हैं। मेहनत का पैसा भी आधा रह गया है।” पंजाब, राजस्थान और महाराष्ट्र में भी यही स्थिति है।
संस्कृति के खोने का खतरा
इतिहासकार मानते हैं कि ट्रक आर्ट केवल सजावट नहीं, बल्कि लोक कला का एक जीवंत रूप है, जो क्षेत्रीय भाषाओं, मुहावरों और लोककथाओं को सड़कों पर ज़िंदा रखता है। अगर मौजूदा रफ्तार जारी रही तो यह कला आने वाली पीढ़ियों के लिए सिर्फ तस्वीरों और किताबों में रह जाएगी।
सरकार और संगठनों से उम्मीद
कला विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रक आर्ट को बचाने के लिए सरकारी और निजी पहल जरूरी है, जैसे—वर्कशॉप, प्रदर्शनियां और पारंपरिक पेंटिंग्स को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक सहयोग।
भारत के ट्रक आर्टिस्टों की रंगीन दुनिया अब एक मोड़ पर खड़ी है—जहां या तो यह स्टीकर के नीचे दबकर खत्म हो जाएगी, या फिर नए तरीके से खुद को ढालकर आने वाली पीढ़ियों तक जिंदा रहेगी।