
पटना। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2025) वर्ष के अंत तक संभावित है और ऐसी अटकलें लगाई जा रही हैं कि यह चुनाव दीपावली (Diwali) और छठ (Chhath) के बीच या उसके बाद कराए जा सकते हैं। चुनाव भारतीय लोकतंत्र का महापर्व होता है, लेकिन दुख की बात यह है कि देशभर में मतदान प्रतिशत धीरे-धीरे घट रहा है। युवाओं की भागीदारी भी उत्साहजनक नहीं दिख रही, जो चिंता का विषय है। हालांकि बिहार एक ऐसा राज्य है जिसे बुद्धिजीवियों की भूमि कहा जाता है। यहां के लोग अपने कर्तव्यों और अधिकारों को लेकर सजग रहते हैं, लेकिन सादगी और सहजता का फायदा अक्सर नेता उठा लेते हैं।
बिहार के युवाओं की उपेक्षा और बेरोजगारी
आज अगर देश के किसी राज्य के युवा सबसे अधिक उपेक्षित हैं, तो वह बिहार है। आप देश के किसी भी कोने में चले जाइए, बिहार का कोई युवा मेहनत करता मिलेगा, लेकिन अपने राज्य में अवसरों की भारी कमी है। पूर्व उद्योग मंत्री से बातचीत के दौरान यह जानकारी मिली कि अब केंद्र के निर्देश के अनुसार सरकारें खुद उद्योग नहीं लगाएंगी। सवाल यह है कि जब तक बिहार की छवि सुधरेगी नहीं, तब तक निजी निवेशक भी वहां नहीं आएंगे।
राजनीति में सब्ज़बाग और हकीकत का फासला
बिहार की राजनीति वर्षों से जातिवाद और भावनात्मक मुद्दों में उलझी रही है। स्वतंत्रता के बाद शुरुआती नेताओं ने कुछ कार्य जरूर किए, लेकिन उसके बाद सत्ता में आए मुख्यमंत्रियों ने केवल जातीय समीकरण साधने में ऊर्जा लगाई। राज्य को प्रगति की ओर ले जाने के लिए दीर्घकालीन सोच और पारदर्शी प्रशासन चाहिए, न कि वादों के पुलिंदे। जनता बार-बार नेताओं के जाल में फंस जाती है और फिर पांच साल तक अफसोस करती रहती है।
मीडिया और छवि का संकट
बिहार की छवि को जितना नुकसान बाहरी मीडिया से जुड़े लोगों की अज्ञानतापूर्ण टिप्पणियों ने पहुंचाया है, उतना शायद किसी और चीज ने नहीं। ये लोग प्रदेश को पिछड़ा बताकर अपने आपको आगे दिखाने की कोशिश करते हैं। उन्हें नहीं पता कि इससे निवेश, सम्मान और विश्वास की जो हानि होती है, वह कितनी बड़ी होती है।
चुनावी रणनीति और गठबंधन का गणित
फिलहाल राजनीतिक दलों की रणनीति भी साफ नहीं है। सूत्रों के अनुसार भाजपा और जदयू एक साथ चुनाव लड़ेंगे। जदयू को 102–103 और भाजपा को 101–102 सीटें मिल सकती हैं। इसके अलावा लोजपा, हम (मांझी), रालोसपा (कुशवाहा) और राष्ट्रीय लोक मंच को भी कुछ सीटें मिलेंगी। लेकिन मांगें बढ़ सकती हैं और समीकरण बदल सकते हैं।
विपक्ष की रणनीति और नेतृत्व भी अब तक तय नहीं है। ऐसे में एनडीए को फिलहाल बढ़त मानी जा रही है। हालांकि, चुनावी हवा का रुख अक्सर अंतिम समय में बदल जाता है।
मतदान का समय और छिपी रणनीति
चुनाव दीपावली और छठ के आसपास कराए जाने की योजना का उद्देश्य मतदान प्रतिशत बढ़ाना बताया जा रहा है। लेकिन इसके पीछे की राजनीति भी समझनी होगी। यह तय है कि राजनीतिक दल मतदाता सूची में हेरफेर, प्रचार, वादे और हरसंभव तरीके से जीतने की कोशिश करेंगे — साम, दाम, दंड, भेद का फॉर्मूला हर बार की तरह अपनाया जाएगा।
बिहार को चाहिए ठोस विकास, शिक्षा और सम्मान
बिहार को अब सपनों के झूठे पुल नहीं, बल्कि ठोस नींव की जरूरत है। शिक्षा का शतप्रतिशत प्रसार न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे भारत के लिए अनिवार्य है। जब तक ज्ञान का दीपक हर घर तक नहीं पहुंचेगा, तब तक बिहार, और भारत — दोनों ही उपेक्षित रहेंगे। चुनाव आते हैं, जाते हैं, नेता भी बदलते हैं, लेकिन अगर जनता जागरूक हो और प्रदेश की छवि को बेहतर बनाने का जिम्मा खुद उठाए, तभी कोई सार्थक बदलाव संभव है।
बिहार को आगे ले जाने के लिए आत्मविश्लेषण, जागरूकता, शिक्षा, निवेश और ईमानदार नेतृत्व की जरूरत है।