संघ प्रमुख मोहन भागवत का आह्वान, एकता की भावना को बनाएं स्थायी
डॉ मोहन भागवत ने चेतावनी दी कि जब तक द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत से उत्पन्न पाखंड जीवित रहेगा, तब तक आतंकवाद का खतरा बना रहेगा

डॉ धनंजय गिरि
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने भारतीय सेना के ’ऑपरेशन सिंदूर’ में दिखाए गए अद्भुत शौर्य और पराक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। उन्होंने कहा कि पहलगाम हमले के बाद देशभर में दुख और आक्रोश का माहौल था और इस नृशंस वारदात के दोषियों को दंडित करने के लिए जो सख्त कार्रवाई की गई, उसने एक बार फिर हमारी सेना की वीरता को सिद्ध किया।
सरसंघचालक ने कहा कि इस संकट की घड़ी में राजनीतिक दलों ने अपने मतभेद भुलाकर जिस तरह एकजुटता दिखाई, वह सराहनीय है। समाज के हर वर्ग ने भी एकता का संदेश दिया। उन्होंने देशवासियों से इस एकता को चिरस्थायी बनाने का आग्रह करते हुए कहा कि “हमारी ताकत की जड़ें एकता में हैं। यही हमारी असली ताकत है। भाषाओं और रीति-रिवाजों की विविधता के बावजूद राष्ट्रीय एकता सर्वोपरि है।”
डॉ मोहन भागवत ने चेतावनी दी कि जब तक द्विराष्ट्रवाद के सिद्धांत से उत्पन्न पाखंड जीवित रहेगा, तब तक आतंकवाद का खतरा बना रहेगा। उन्होंने बिना पाकिस्तान का नाम लिए कहा कि जो शक्तियाँ भारत से सीधे युद्ध में नहीं जीत सकतीं, वे अब छद्म युद्ध का सहारा ले रही हैं। उन्होंने आत्मनिर्भर सुरक्षा प्रणाली की आवश्यकता पर बल देते हुए रक्षा अनुसंधान में निरंतर नवाचार की जरूरत बताई।
संघ प्रमुख ने समाज में व्याप्त टकराव, आवेगपूर्ण कार्यवाही और कानून को हाथ में लेने की प्रवृत्तियों पर चिंता जताते हुए कहा कि यह देश के हित में नहीं है। “बिना कारण के विवादों से शांति और सौहार्द्र दोनों को नुकसान होता है,” उन्होंने कहा। उन्होंने आपसी सद्भाव, सहयोग और सकारात्मक सोच के साथ समाज में रहने की जरूरत पर जोर दिया।
सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग’ को संघ के स्वयंसेवकों के लिए एक प्रशिक्षण मंच बताया जिसका उद्देश्य स्वयंसेवकों की समझ, क्षमता और नेतृत्व विकास करना है। प्रशिक्षण के उपरांत स्वयंसेवक राष्ट्र निर्माण, चरित्र निर्माण और सामाजिक संगठन के कार्यों में अपनी भूमिका निभाते हैं।
धर्मांतरण के मुद्दे पर बोलते हुए सरसंघचालक ने स्पष्ट किया कि संघ स्वेच्छा से किए गए धर्मांतरण के विरोध में नहीं है। लेकिन यदि धर्मांतरण प्रलोभन, जबरदस्ती या दबाव के माध्यम से कराया जाता है तो वह हिंसा का ही एक रूप है, जिसका संघ विरोध करता है। उन्होंने कहा, “लोगों को यह कहना कि उनके पूर्वज गलत थे, उनका अपमान करना है। ऐसे धर्मांतरण के खिलाफ सक्रिय अभियान चलाया जाना चाहिए।”
इस मौके पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने मुख्य अतिथि के तौर पर कहा कि धर्मांतरण आज एक गंभीर चुनौती बन चुका है और इसका समाधान संघ और समाज मिलकर निकाल सकते हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “हम सब इसी मिट्टी के हैं। इस संकट से निपटने के लिए संघ को अपने अभियान को और गति देनी होगी।” नेताम ने बस्तर में नक्सलवाद और जबरन धर्मांतरण की दोहरी चुनौती की ओर विशेष ध्यान दिलाया। उन्होंने कार्यक्रम में आमंत्रित किए जाने के लिए संघ और सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत का आभार प्रकट करते हुए कहा, “संघ ने राष्ट्रीय एकता, अखंडता और समरसता के लिए जो योगदान दिया है, वह अतुलनीय है। मुझे संघ को नज़दीक से जानने और समझने का अवसर मिला, इसके लिए मैं आभारी हूं।”