
नई दिल्ली/पटना। बिहार विधानसभा चुनावों से पहले सियासत तेज होती जा रही है। कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के उस बयान का समर्थन किया है, जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में धांधली का आरोप लगाया था और आशंका जताई थी कि बिहार में भी वही दोहराया जा सकता है।
प्रमोद तिवारी ने कहा, “मैं राहुल गांधी के बयान का पूर्ण समर्थन करता हूं। उन्होंने वही मुद्दे उठाए हैं जिन्हें हमने पहले ही चुनाव आयोग के समक्ष उठाया था। महाराष्ट्र में जितने वोट बढ़े, सब भाजपा को गए। शाम को वोट प्रतिशत कुछ और था, सुबह कुछ और बताया गया। मतदान कर्मियों की तैनाती में भी साजिश दिखाई दी। यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत हैं। भाजपा लोकतंत्र की हत्या कर रही है।”
राहुल गांधी ने शनिवार को एक्स (पूर्व ट्विटर) पर एक अखबार में प्रकाशित अपने लेख को साझा करते हुए लिखा, “2024 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, लोकतंत्र में धांधली का खाका था। मेरा लेख दिखाता है कि यह कैसे हुआ – चरण दर चरण।”
उन्होंने इस “धांधली” को पाँच-चरणीय साजिश बताया और कहा कि भाजपा लोकतंत्र की “मैच फिक्सिंग” कर रही है:
- चरण 1: चुनाव आयोग की नियुक्ति करने वाले पैनल में हेराफेरी
- चरण 2: मतदाता सूची में फर्जी नाम जोड़ना
- चरण 3: मतदान प्रतिशत में कृत्रिम बढ़ोतरी
- चरण 4: फर्जी मतदान को उन क्षेत्रों में लक्षित करना, जहां भाजपा को जीतना है
- चरण 5: सबूतों को छिपाना और संस्थागत पारदर्शिता खत्म करना
गांधी ने अपने लेख में लिखा कि “धोखेबाज़ खेल तो जीत सकते हैं, लेकिन वे संस्थाओं को बर्बाद कर देते हैं और जनता का लोकतंत्र से भरोसा छीन लेते हैं।”
कांग्रेस ने स्पष्ट रूप से भाजपा पर चुनावी प्रणाली को कमजोर करने और निष्पक्ष चुनाव की भावना को खत्म करने का आरोप लगाया है। अब जब बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, राहुल गांधी और कांग्रेस के इन आरोपों से राजनीतिक पारा और चढ़ने की पूरी संभावना है। उन्होंने चुनावी धांधली की तुलना “मैच फिक्सिंग” से करते हुए कहा कि भले ही धोखाधड़ी करने वाला पक्ष चुनाव जीत जाए, लेकिन इससे लोकतांत्रिक संस्थाओं को गहरा नुकसान पहुंचता है और जनता का चुनावी नतीजों पर से भरोसा उठ जाता है। रायबरेली से सांसद ने कहा कि यह समझना कठिन नहीं है कि महाराष्ट्र में भाजपा इतनी बौखलाहट में क्यों थी। लेकिन धांधली ठीक वैसी ही है जैसे मैच फिक्सिंग – जिसमें जीत तो मिल सकती है, लेकिन कीमत लोकतंत्र की साख और संस्थागत भरोसे की चुकानी पड़ती है। उन्होंने कहा कि हर जागरूक नागरिक को इन तथ्यों को खुद देखना चाहिए, सोच-समझकर निर्णय लेना चाहिए और जवाबदेही की मांग करनी चाहिए।