मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ संघ प्रमुख का सार्थक संवाद: राष्ट्रहित में संवाद का नया अध्याय

नई दिल्ली। नई दिल्ली स्थित हरियाणा भवन में हाल ही में एक ऐतिहासिक बैठक का आयोजन हुआ, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) और मुस्लिम धर्मगुरुओं के बीच खुला एवं सौहार्द्रपूर्ण संवाद हुआ। यह बैठक अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख डॉ. उमर अहमद इलियासी की पहल पर आयोजित की गई थी, जिसमें देशभर से आए लगभग 60 प्रमुख इमाम, मुफ्ती और मुस्लिम बुद्धिजीवी शामिल हुए।
करीब साढ़े तीन घंटे चले इस संवाद कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले, डॉ. कृष्ण गोपाल, रामलाल और इंद्रेश कुमार जैसे वरिष्ठ पदाधिकारी भी उपस्थित रहे। इस बैठक का मुख्य उद्देश्य था—देशहित में एकजुटता और सहयोग को लेकर सार्थक चर्चा करना।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुस्लिम समाज के प्रतिनिधियों की बातों को गंभीरता से सुना और इस बात पर ज़ोर दिया कि राष्ट्रीय मुद्दों पर मिलकर समाधान ढूंढ़ना समय की मांग है। उन्होंने डॉ. इलियासी की इस राय से सहमति जताई कि मंदिर-मस्जिद, इमाम-पुजारी और गुरुकुल-मदरसे के बीच नियमित संवाद होते रहना चाहिए।
संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने इसे संघ की सभी वर्गों के साथ चल रही संवाद प्रक्रिया का हिस्सा बताया, जबकि डॉ. उमर इलियासी ने कहा, “संवाद ही सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान है।” उन्होंने कहा कि संवाद से आपसी गलतफहमियां दूर होती हैं और भरोसा बढ़ता है।
इस अवसर को विशेष बनाते हुए इलियासी ने यह भी उल्लेख किया कि यह बैठक संघ की स्थापना के 100 वर्ष और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के 50 वर्ष पूर्ण होने के महत्वपूर्ण समय में हो रही है।
लखनऊ स्थित टीले वाली मस्जिद के इमाम मौलाना सैयद फजलुल मन्नान रहमानी ने इस बैठक को राष्ट्रहित में एक सकारात्मक कदम बताते हुए कहा, “संघ प्रमुख ने जिस गंभीरता और धैर्य के साथ सभी की बात सुनी, वह प्रशंसनीय है।” उन्होंने ऐसे संवाद हर राज्य में आयोजित करने का सुझाव दिया।
मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलाधिपति फिरोज अहमद बख्त ने सुझाव दिया कि संघ को मुस्लिम समाज की बेहतरी के लिए कार्य कर रहे चेहरों को सामने लाना चाहिए।
निष्कर्षतः, यह संवाद एक ऐसा प्रयास था जिसमें दोनों पक्षों ने बिना पूर्वाग्रह के अपने विचार रखे। बीते वर्षों में संघ प्रमुख द्वारा मुस्लिम धर्मगुरुओं के साथ किए गए संवादों की यह कड़ी और भी मजबूत हुई है। यह बैठक न केवल साम्प्रदायिक सौहार्द्र की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, बल्कि इससे एक नए युग के संवाद और सहयोग की शुरुआत भी होती दिख रही है।