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गोबर से तैयार की जाती हैं गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति, दीपक और ज्वैलरी, बाजार में जबर्दस्त हो रही है डिमांड

प्रयागराज संगम नगरी में आशा रानी फाउंडेशन के तहत आभा सिंह ने गोबर से मूर्ति को तैयार करने का काम शुरू किया, जो पानी में नहीं गलता है और न ही वह रंग छोड़ता है। आभा सिंह ने दो साल पहले गोबर से मूर्ति और ज्वैलरी बनानी शुरू की। रंग-बिरंगी मूर्तियों को लोग इतना पसंद करने लगे कि आज मांग के अनुसार उपलब्ध नहीं करा पा रही हैं। साथ ही बनाई गई मूर्ति और ज्वैलरी घर से ही लोग खरीद ले जाते हैं। दीपावाली पर गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति की मांग काफी बढ़ जाती है।

कैसे तैयार करती हैं?

आभा सिंह बताती हैं कि वह गरमागरम गोबर को मिलाकर टाइट करती हैं। इससे वह गोबर को आसानी से मूर्ति और ज्वैलरी के अनुरूप आकार देती हैं। शुरुआत में वह बच्चों के खिलौने से आकार तैयार करती थीं। अब धीरे-धीरे अन्य चीजों का भी सहारा लेने लगी हैं। उन्होंने बताया कि गोबर से भगवान की मूर्तियां, वॉल हैंगिंग, शुभ-लाभ, सूर्य के माला आदि बनाती हैं। गोबर के 220 उत्पाद बनाने की कला जानती हैं। धीरे-धीरे सबको बनाना शुरू करेंगी और बाजार में पेश करेंगी।

अभी हाल ही में कृषि अनुसंधान दिल्ली में मूर्ति और ज्वैलरी की प्रदर्शनी लगाई थी। इसके अलावा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भी प्रदर्शनी लगा चुकी हैं। इसकी कीमत 350 से 750 रुपये तक की है। जिससे लगभग प्रति माह 50 हजार तक कि कमाई करती हैं।

उन्होंने बताया कि जो मूर्ति और ज्वैलरी तैयार होती है, उसके पेंट करने की जिम्मेदारी बहू को दी हूं। बहू के सहयोग से ही यह सब कुछ संभव हो सका है। इनके अलावा दस महिलाएं काम पर हैं। जो प्रतिमाह पांच हज़ार लेती हैं। मूर्ति और ज्वैलरी बनाने में सहयोग करती हैं।

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