
पुरी (ओडिशा): पुरी के जगन्नाथ धाम में हर वर्ष रथ यात्रा से पहले भगवान श्रीजगन्नाथ 15 दिनों तक “बीमार” रहते हैं। यह परंपरा न केवल भक्तों के लिए एक रहस्य है, बल्कि इससे जुड़ी मान्यताएं और धार्मिक भावनाएं भी बेहद गहन हैं। इस अवधि को “अनवसर काल” या “अनसरा” कहा जाता है।
क्या है अनवसर काल?
अनसरा ओडिशा के पुरी स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर की वह पवित्र परंपरा है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा 15 दिनों के लिए बाहर नहीं आते और “शयन” करते हैं। इस समय को देव स्नान पूर्णिमा के बाद से लेकर रथ यात्रा तक का समय माना जाता है।
बीमारी का कारण क्या है?
पौराणिक मान्यता के अनुसार, स्नान पूर्णिमा के दिन भगवान को 108 कलशों से पंचामृत और जल से अभिषेक किया जाता है। यह प्रक्रिया इतनी विस्तृत और ठंडी होती है कि इसके बाद भगवान ‘रोगग्रस्त’ हो जाते हैं और उन्हें विश्राम की आवश्यकता होती है।
इसे “देव शयन” भी कहा जाता है। ठीक वैसे ही जैसे इंसान को बीमारी के समय आराम और इलाज की ज़रूरत होती है, भगवान को भी विशेष औषधियों और फलाहार से ठीक किया जाता है।
कहाँ रहते हैं भगवान इस दौरान?
बीमार होने के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को ‘अनसरा घर’ नामक एक विशेष कक्ष में रखा जाता है। वहां केवल सेवक और वैद्य (राजवैद्य) ही प्रवेश कर सकते हैं। श्रद्धालुओं को भगवान के दर्शन नहीं होते।
क्या होता है उपचार?
इस दौरान भगवान को जड़ी-बूटी से बनी आयुर्वेदिक औषधियां दी जाती हैं, जिन्हें ‘दसामूल काढ़ा’ कहा जाता है। इसके साथ उन्हें हल्का फलाहार और तुलसी युक्त पेय पिलाया जाता है।
आखिर में क्या होता है?
इस 15 दिवसीय शयनकाल के बाद भगवान जगन्नाथ “नवयौवन” धारण करते हैं और फिर भव्य रथ यात्रा के लिए बाहर आते हैं। इसे ‘नवयौवन दर्शन’ कहा जाता है। भक्त इस दिन भगवान के दर्शन कर पुण्य प्राप्त करते हैं।
आध्यात्मिक संदेश:
भगवान जगन्नाथ का यह बीमार होना एक रूपक है — यह हमें यह सिखाता है कि ईश्वर भी अपने भक्तों की तरह सादगी, मानवीय अनुभव और प्रकृति के नियमों से जुड़े हैं। यह परंपरा न केवल धार्मिक है, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक रूप से भी अत्यंत गूढ़ है।
इस प्रकार, भगवान का 15 दिनों तक बीमार रहना एक गहरी श्रद्धा और आस्था से जुड़ी परंपरा है, जो रथ यात्रा के अद्भुत उत्सव की शुरुआत का संकेत देती है।