
आज 23 मार्च को शहीद दिवस है। क्योंकि आज से 94 साल पहले इसी दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी। देश के लिए इन तीनों वीर सपूतों ने हंसते हुए अपनी जान कुर्बान कर दी थी। 23 मार्च ये वो तारीख है जो दुख, गर्व और गुस्सा, तीनों तरह की भावना पैदा करता है। दुख, क्योंकि इसी दिन देश ने अपने तीन वीर सपूतों को खो दिया था। गर्व, क्योंकि उन वीरों ने हंसते-हंसते भारत के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। गुस्सा, क्योंकि ये दिन याद दिलाता है कि ब्रिटिश हुकूमत ने हमपर कितने अत्याचार किए हैं।
कुर्बानी की याद दिलाने वाली ऐसी ही एक तारीख है- 23 मार्च 1931 की। जब अंग्रेजों ने महज 23-24 साल के युवा भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी थी। उन्हीं में से ये तीन नाम भारतीय इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज हैं। जब ब्रिटिश सरकार का अत्याचार बढ़ता गया, तब भगत सिंह और उनके साथियों ने अंग्रेजों को दिखा दिया कि भारतीय युवा डरते नहीं हैं। उन्होंने साइमन कमीशन के विरोध में लाला लाजपत राय पर हुए लाठीचार्ज का बदला लिया। असेम्बली में बम फेंककर ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा बुलंद किया।
राजगुरु कोन थे – महाराष्ट्र के एक वीर योद्धा, जो अंग्रेजों के खिलाफ हर मोर्चे पर डटे रहे। उन्होंने साबित कर दिया कि ‘मातृभूमि की सेवा सबसे बड़ा धर्म है।’
सुखदेव कोन थे – लाहौर षड्यंत्र केस के प्रमुख क्रांतिकारियों में से एक। जिन्होंने न केवल आंदोलन को संगठित किया, बल्कि भारत के युवाओं में देशभक्ति की भावना जगाई।
भगत सिंह के कुछ क्रांतिकारी विचार
. बेम और पिस्तौल से क्रांति नहीं करते। क्रांति की तलवार विचारों के पत्थर पर तेज होती है।
. मैं एक मानव हूं और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है। भगत सिंह के इस विचार ने उस दौर के कई लोगों के दिलों में आजादी की लड़ाई लड़ने का जोश जगाया था।
. अगर बहरों को सुनाना है तो आवाज बहुत तेज होनी चाहिए।
. जो भी व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है, उसे हर एक रुढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा, तथा उसे चुनौती देनी होगी।
. वो मुझे मार सकते हैं, लेकिन वो मेरे विचारों को नहीं मार सकते। वो मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन वो मेरी आत्मा को कुचल नहीं सकते।